अंतिम कविता।

दुनिया के सामने लिखना छोड़ चुकी हु मैं,

अपने अश्को को बाटना छोड़ चुकी हु मैं।

तू गया था मुझे कुछ उम्मीद देके,

अब तेरा इन्तेजार करना छोड़ चुकी हु मैं।

दिल की बातो को बयां करना छोड़ चुकी हु मैं,

दुनिया के सामने लिखना छोड़ चुकी हु मैं।

चला गया तू मुझे हर बार गम देके,

अब तुझपे ऐतबार करना छोड़ चुकी हु मैं।

खुद से सवाल करना छोड़ चुकी हु मैं,

तेरे बारे में बात करना छोड़ चुकी हु मैं।

लफ़्ज़ों पे तेरा नाम लाना छोड़ चुकी हु मैं,

दुनिया के सामने लिखना छोड़ चुकी हु मैं,

अपने अश्को को बाटना छोड़ चुकी हु मैं।